नवजात की किलकारी गूंजते ही घर महौल खुशियों से भर जाता है। साथ नवजात की सही देखभाल करना एक खास दायित्व बन जाता है। जोकि हर मां के लिए अति जरूरी है। पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
बच्चों के जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक काफी परेशानियां आती हैं। जिन्हें घर पर बुर्जुग की सलाह देखभाल और चिकित्सक जांच उपचार जरूरी है। छोटी-छोटी बाते ध्यान में रख कर नवजात को स्वस्थ सुरक्षित रखा जा सकता है।
नवजात स्वास्थ्य देखभाल / शिशु देखभाल / Newborn Baby Care in Hindi / Navjat Shishu ki Dekhbhal / Shishu ki Dekhbhal kaise kare / Baby Care Tips

नवजात शिशु को कैसे उठाये और गोद लें / दैनिक देखभाल
- नवजात का शरीर काफी नाजुक कोमल होता है। छोटे बच्चों को प्यार से दोनों हाथों के बल उठायें। सिर झुकने से बचायें। अकसर नवजात बच्चों का सिर काफी नाजुक होता है।
- हमेशा नवजात को सिर के बल ही उठायें। नवजात की गर्दन सिर झुकने मुड़ने से बचायें।
- छोटे बच्चों के उंगलियों पर बालों को नहीं उलझने दें। नवजात के उगलियों, गले आदि शरीर अंग पर मां के बाल फसंने पर आराम से निकालें। नवजात बच्चे के अंगों पर लगा बाल उगंलियां, शरीर अंग काट सकता है। क्योंकि नवजात का शरीर बहुत ही नाजुक कोमल होता है।
- नवजात को हवा में उछाले नहीं। कई लोग अनजाने में छोटे बच्चों को दोनों हाथों से उछालकर खेलते हैं। जिसका दुष्प्रभाव बच्चे के मतिष्क और नाजुक अंगों पर पड़ता है।
- नवजात के होठों का चुम्मा-किश नहीं लें। व्यक्ति की कई नवजात बीमारियां शरीर में प्रवृष्टि होने सम्भावनाएं अधिक रहती है। और नवजात के फेफड़े ग्रसित हो सकते हैं। शिशु की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
- नवजात को गंदें हाथों से नहीं पकड़ने - छुएं। अकसर नवजात की रोगप्रतिरोधक क्षमत नाजुक होती है। नवजात को पकड़ने से पहले हाथों को एंटीसेप्टिक क्रीम, साबुन से हाथ धायें और हाथ सुखा कर ही बच्चे को उठाये गोद लें। जिससे नवजात को वायरल संक्रमण की सम्भावनाएं नहीं रहती हैं।
- सर्दी जुकाम वायरल अन्य संक्रमण ग्रसित रोगी व्यक्ति नवजात से दूर रहें। वायरल -संक्रमण नवजात को जल्दी चपेट में ले सकता है।
- नवजात को अकेला नहीं छोड़े। हमेशा नवजात की देखरेख करें।
- आसानी से मुंह में चली जाने वाली छोटी-छोटी वस्तुएं नवजात से दूर रखें। अकसर नवजात हर चीज को सीधे मुंह की ले जाता है। कई बार गलती से नवजात के कोई वस्तु निगल सकता है।
- नवजात को डांटे नहीं। खूब प्यार दुलार करें। अकसर 1-2 साल का समय बच्चों का मस्तिष्क विकास काफी तेजी से होता है। जिस तरह की परवरिश माहौल बच्चे को मिलता है। उसी तरह से मस्तिष्क शरीरिक विकास होता है।
- नवजात को कोमल गर्म कपड़े पहनाएं और कोमल आरामदायक विस्तर इस्तेमाल करें। बाहरी हवा वतावरण से बचायें। शिशु को हवा से सर्दी जुकाम बहुत जल्दी लगती है।
- नवजात को खेलने में उछालने, झकझौरने, अधिक हिलाने डुलाने, शिशु गुस्सा करने आदि तरह से शिशु की शरीरिक क्रिया से बचें। नवजात का सिर शरीर बहुत कमजोर होता है। जिससे शरीर में रक्त संचार रूकावट प्रभावित हो जाती है। जिससे शरीर अंग विकृत, शिशु शरीर अंग विकार हो सकता है।
नवजात के नाभि कटने के बाद लगातार नाभि पर ध्यान दें। नाभि पर सूजन, संक्रमण, पस बन सकता है। अकसर नाभि को सूखने में लगभग 15-25 दिन लग जाते हैं। नवजात नाभि का ढंक कर रखें। नवजात नाभि को गन्दे हाथ, मक्खी, परजीवी, धूल इत्यादि से बचायें। नाभि भर सूजन, पस, संक्रमण दिखने पर तुरन्त बच्चा स्वास्थ्य केन्द्र में सम्पर्क कर जांच एंव उपचार करवायें।
शिशु की नियमित स्वास्थ्य जांच
नवजात स्वास्थ्य की जांच महीना अन्तराल में 1-2 अवश्य करवायें। शिशु स्वास्थ्य, मस्तिष्क और शरीरिक विकास - ग्रोथ जानना जरूरी है। जिससे नवजात की समय के साथ-साथ सही ग्रोथ हो सके। नवजात की असमान्य हरकत को नकारे नहीं। जैसे कि बच्चे के आंखों से लगातार आंसू आना, अधिक पसीना आना, नजर परिवर्तन, चीखना चिल्लाना, लगातार रोना, शरीर गर्म रहना आदि लक्षण है।
नवजात बच्चे को सुलाने और जगाने का तरीका
- 0-5 माह तक के नवजात बच्चे को लगभग 12-16 घण्टे नींद की जरूरत होती है। और 6-10 माह के शिशु 10-12 घण्टे सोते - आराम करते हैं। रात के समय बच्चे कम सोते हैं। अधिकत्तर नवजात दिन के वक्त सोते हैं। नवजात की कम सोने की समस्या में चिकित्सक को दिखायें।
- नवजात बच्चे के नीचे तकिया नहीं रखें। तकिया की जगह कोमल मखमल कपड़ा बिटाकर रखें। सिराना अधिक ऊंचा नहीं करें। ऊंचा तकिया सिराना बच्चे की गर्दन, गले के लिए घातक होता है। नवजात बच्चे का सिराना तकिया लगभग 2-3 इंच तक ऊंचा रखें।
- नवजात बच्चे के आसपास दुपट्टा, साड़ी, आदि उलझने लिपटने वाले कपड़े नहीं रखें। दुपट्टा, कपड़ा बच्चे के गर्दन मुंह को लिपट सकता है। जिससे बच्चे की सांस रूक सकती है।
- शिशु को मच्छरदानी के अन्दर सुलायें। मक्खी, मच्छर, परजीवियों से नवजात को बचायें।
- नवजात बच्चे के आसपास धूप, अगरबत्ती, आग आदि नहीं जलायें। धूप अगरबत्ती धुआं नवजात के लिए काफी घातक होता है।
- सोये में नवजात के सिर शरीर की स्थिति पर ध्यान दें। नवजात की सोने की स्थिति को बदलते रहें।
- सुबह नवजात को प्यार से थपथपाकर जगायें। सोये में बच्चे को अचानक नहीं उठायें। नवजात को हंसी मुस्कराहट के साथ जागये और साथ खेलें, प्यार से बातचीत करें।
नवजात के लिए ब्रेस्ट फीडिंग बहुत जरूरी है। मां का दूध बच्चे के लिए रिच पोषण स्रोत है। प्रसव के बाद का कोलस्ट्रम - मेच्योर मिल्क नवजात के लिए खास पोषण है। जोकि नवजात को रिच पौषण दिलाने के साथ-साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जोकि नवजात को वायरल संक्रमण जुकाम से बचाती है। नवजात को समय अन्तराल पर स्तनपान करवाते रहें। नवजात को केवल मां का दूध पिलायें। कई मां आधुनिक लाईफ स्टाईल के कारण नवजात को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करवाती हैं। शिशुओं के लिए मां का दूध बरदान है।
- नवजात को स्तनपान कराने से पहले स्तनों साफ गुनगुने -पानी से धायें। शिशु को स्तनपान कराने के बाद भी स्तनों से साफ करें। स्तन साफ सफाई बच्चे को मां स्तनों से होने वाले संक्रमण वायरल से बचाती है।
- नवजात को दिन में 5-6 बाद स्तनपान करवायें। अधिक स्तनपान से नवजात को दस्त, उल्टी, अपचन की समस्या हो सकती है। अगर नवजात दिन में 5-6 बार डायपर गीला करे तो चिकित्सक को दिखायें।
- स्तनों पर अधिक दूध होने पर दूध कपड़े पर निकालें। नवजात को अधिक स्तनपान नहीं करवायें।
- अगर स्तनों में दूध की कमी है तो मां के लिए दाले, हरी सब्जियां, फल, फल रस सेवन फायदेमंद है। जिनसे स्तनों में दूध में वृद्धि हो जाती है।
- नवजात को स्तनपान करवाते समय नवजात का सिर ऊपर की तरफ उठाकर रखें। नवजात का सिर झुकने से बचाये। और नवजात को सीधे लिटाकर स्तनपान नहीं करवायें।
अकसर कई बार मां स्तनों में दूध की कमी वजह से नवजात को बोतल फीडिंग करवानी पड़ती है। डिब्बा दूध, पाउडर नवजात सीमित मात्रा में करवायें। डिब्बे पर लिखे निर्देश ध्यान से पढ़े। लिखित रूप में बताये गये निर्देशों अनुसार नवजात को बोतल फीडिंग करवायें।
- बोतल को हमेशा स्वच्छ रखें। दूध फीडिंग के बाद तुरन्त बोतल को गर्म पानी से धोयें। और दूध बोतल में डालने से पहले भी बोतल को गुनगुने पानी से धायें। फीडिंग बोतल को सुखाकर रखें।
- नवजात का सिर शरीर ऊपर कर बोतल फीडिंग करवायें। नवजात को लिटाकर, नवजात का सिर पीछे की तरफ झुकी स्थिति पर बोतल फीडिंग नहीं करवायें। बोतल 40 डिग्री कोण तक झुकाकर पिलाएं।
- दूध फीडिंग बोतल स्टील, कांच से बनी हुई इस्तेमाल करें। प्लास्टिक फीडिंग बोतल बच्चों के स्वास्थ्य के हानिकारक होती है। प्लास्टिक बोतल में गर्म डालने पर कैमिक्ल दूध में घुलने लगता है। अकसर प्लास्टिक गर्मी की चपेट में आने पर कैमिक्ल छोड़ने लगता है। उत्तम क्वालिटी के बने प्लास्टिक मिल्क फीडिंग बोतल इस्तेमाल कर सकते हैं।
- बोतल में बचा हुआ वासी दूध नवजात को दोबारा नहीं पिलाएं।
नवजात का डायपर गीला होने पर तुरन्त बदलें। गीले डायपर से शिशु कोमल त्वचा रैशेज संक्रमित हो सकती है। Baby Diapers 3 घण्टे के अंतराल में बदलते रहें। अगर कोमल कपड़ा इस्तेमाल कर रहें तो उसे एंटी सेप्टिक लिक्वड से धोएं फिर अच्छे से सुखाकर इस्तेमाल करें। गीला डायपर कपड़ा शिशु त्वचा को रैशेज संक्रमण करता है। डायपर बदलने से ऑलिव आॅयल, बेबी ऑयल से नवजात के शरीर पर मालिश करें। यूज किया डायपर दोबारा इस्तेमाल नहीं करें।
नवजात को कैसे नहलाएं
- नवजात शिशु को नहलाते समय पानी आंखों, नाक, कानों, मुंह में जाने से बचाएं। सावधानिपूर्वक नवजात को नहलाएं।
- नाल-नाभि सूखने के बाद नवजात को सप्ताह 2-3 बार नहलाएं। नवजात के शरीर को नाॅमल गुनगुने पानी में कोमल कपड़ा भिगो कर साफ करें। अधिक गर्म पानी नवजात की साफ सफाई नहीं करें। नवजात का शरीर बहुत कोमल और नाजुक होता है।
- नवजात को लिटाकर या छिरछा झुकाकर नहीं नहलायें। दो व्यक्ति मिलकर सावधानिपूर्वक नहलाएं। नवजात को बुजुर्ग या अनुभवी व्यक्ति की देखरेख में नहलाएं।
- शिशु को नहलाने के तुरन्त बाद बेबी क्रीम, बेबी ऑयल मालिस करें। और नवजात को बाहरी हवा में ले जाने से बचे।
- नवजात को नहलाने के बाद सुला दें।
- नवजात को चिकित्सक द्वारा सुझाये गये सुरक्षित बेबी शेम्पू, सोप, क्रीम, ऑयल ही इस्तेमाल करें। तीखा तेल एंव झाग युक्त साबुत शैम्पू शिशु की त्वचा के लिए नुकसान पहुंचाता है।
- नवजात शरीर पर सुऱिक्षत बेवी ऑयल से नियमित मसाज करें। मसाज से बच्चों का शरीर मजबूत और स्वस्थ रहता है।
अगर नवजात को बार-बार दस्त लग रहें। या फिर 20 से 24 घण्टे तक शौच नहीं आती है। तो तुरन्त चिकित्सक को दिखायें। और हमेशा नवजात शौच के बाद साफ सफाई का विशेष ध्यान दें। नाॅमल गुनगुने पानी से सफाई के बाद साफ कोमल कपड़े से नवजात शरीर सुखाकर एंटीसेप्टिक क्रीम, ऑयल इस्तेमाल करें। नवजात को बार-बार दस्त आने एवं अन्य तरह के लक्षण महसूस होने पर तुरन्त चिकित्सक को दिखायें। नवजात को 24 घण्टे तक शौच नहीं आना, बार-बार शौच, शिशु का देर तक चिल्लाना अस्वस्थ की ओर संकेत करता है। शिशु को तुरन्त बच्चा स्वास्थ्य केन्द्र में दिखायें।
नियमित रूप से महीने अन्तराल में नवजात स्वास्थ्य जांच करवाएं और नवजात शरीरिक ग्रोथ की जानकारी लेते रहना चाहिए। छोटे बच्चे बोल नहीं पाते। परन्तु बच्चों के कुछ लक्षण हरकत माता-पिता, परिवार जनों, शुभचिन्तकों को सचेत कर देती है। बच्चे अनमोल मोती रूप हैं। उनका विशेष ध्यान जरूरी है। आज का बच्चा कल का भविष्य है।