बच्चों में तनाव के कारण Depression in Children Hindi Health Tips in Hindi, Protected Health Information, Ayurveda Health Articles, Health News in Hindi बच्चों में तनाव के कारण Depression in Children Hindi - Health Tips in Hindi, Protected Health Information, Ayurveda Health Articles, Health News in Hindi

बच्चों में तनाव के कारण Depression in Children Hindi

आधुनिक बदलती जीवन शैली में अधिकत्तर बच्चे सायकोटिक डिप्रेशन से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में सायकोटिक डिप्रेशन का कारण बच्चों को अधिक डांट फटकार लगाना, बच्चों का अकेलापन, बच्चों को समझने में गलती है और बच्चों पर पढाई का अधिक बोझ तनाव है। बच्चों की बातों को नाकारे नहीं। बच्चों की छोटी-छोटी बातों को ध्यान से सुने और निर्णय बच्चों पर थोपे नहीं। सायकोटिक डिप्रेशन के कारण बच्चों में आत्महत्या प्रवृति बढ़ रही है। बच्चों में तनाव एक गम्भीर विषय है। बच्चों को तनाव मुक्त रखें। सही परवरिश बच्चों को सुनहरा भविष्य देती सकती है।

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बच्चों में डिप्रेशन क्या है ?
बच्चों में उदासी मायूसी लक्षण दिखें तो तुरन्त सर्तक हो जायें। क्योंकि यह लक्षण एक तरह से बच्चों में सायकोटिक डिसआर्डर डिप्रेशन है। जोकि बच्चों में लम्बे समय तक रहने पर गम्भीर दुष्प्रभाव डालता है। जिसके कारण बच्चे नकारात्मक सोच की ओर बढ़ते हैं। और बच्चे में अकेलापन और चिडचिड़ापन हो जाता है। जिसके कारण बच्चों का काॅफिडेंस लेवल समाप्त होने लगता है।

बच्चों में सायकोटिक डिप्रेशन के लक्षण ?
  • बच्चों में चिड़चिड़ापन होना।
  • बिना कारण दुखी रहना।
  • मायूस गुमसुम रहना।
  • छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना।
  • व्यावहार में बदलाव आना।
  • खाने-पीने की आदत कम होना।
  • पढ़ाई, खेलकूद में मन नहीं लगना।
  • नकारात्मक सोच रहना।
  • बैचेन रहना।
  • स्कूल से शिकायतें आना।
  • आपस में द्धेषपूर्ण व्यवहार करना।
  • आंखें और कान लाल रहना।
  • अकेलापन पंसद करना।
सिलेबस - पढ़ाई तनाव
बच्चों में अधिकत्तर तनाव का कारण आधुनिक पढ़ाई है। जिसमें बच्चे समय पर सिलेबस को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। माक्स कम आना, होमवर्क पूरा नही होना। सिलेबस से पीछे रहने पर माता-पिता, स्कूल में टीचर एंव अभिभावकों से डांट प्रडताणना एक तरह से बच्चों में सायकोटिक डिसआर्डर तनाव है।
बच्चों पर माता पिता, अभिभावक, टीचरस का हमेशा अधिक से अधिक नम्बर लाने और नम्बर 1 बनने पर दबाव रहता है। जोकि बच्चों को मासिक रूप से कमजोर करता है। जिससे बच्चों का काॅफिडेंस लेवल कमजोर होने लगता है। बच्चों पर अधिक बोझ नहीं डालें। बच्चों को खेल की तरह और प्यार से पढ़ायें। बच्चों में तनाव के कारण को समझें और समाधान करें।

खेल-कूद एक्टिविटी नहीं होना 
ट्यूशन, होमवर्क, सिलेबस फाॅलो करने में बच्चे बहुत व्यस्त हो जाते हैं। जिसके कारण बच्चों को खेलकूद क्रीड़ा के लिए वक्त नहीं मिल पाता। बचे हुये थोड़े से वक्त में बच्चे मोबाइल, टैब, कम्प्यूटर में व्यस्थ रहते हैं। जोकि बच्चों मासिक और शरीरिक ग्रोथ को रोकता है। जिससे बच्चे धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार बन जाते हैं। बच्चों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ शरीरिक खूलकूद क्रीड़ा जरूरी है।
बच्चों को मोबाईल गेम्स से दूर रखें। बच्चे अकसर बहुत मासूम होते हैं। आजकल बहुत सी मोबाईल गेम्स बच्चों को गलत डायरेक्शन की तरह ले जा रही हैं। जिनके कारण बच्चे सुसाइड से लेकर गम्भीर अपराध करने पर विवश हो रहे हैं। बच्चों को इंटरनेट गेम्स के वजाय शरीरिक खूलकूद क्रीड़ा करवायें।

असफल होने का डर 
बच्चों के मन में हमेशा हाई लिविंग स्टैंडर्ड से पीछे रहने का डर बना रहता है। जैसेकि माक्स कम आने का डर, भविष्य को सफल बनाने का डर, विभिन्न तरह की प्रतियोगिताओं में पीछे रहने का डर, और असफल होने पर माता-पिता अभिभावकों का मानसिक दबाव में रहने का डर। बच्चे असफल होने पर उन्हें बुरी तरह से डांटे फटकारे नहीं। उन्हें प्यास से समझायें। आने वाले अगले अवसर के लिए बच्चों का काॅफिडेंस लेवल बढ़ायें। जिससे बच्चें पूरे जोश उमंग के साथ आने वाले कैरियर अवसरों की तैयारी करें।

बच्चों को समय नहीं दे पाना
आधुनिक व्यस्त जीवन शैली में अधिकत्तर माता-पिता अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पाते। बच्चों का हर छोटी-छोटी समस्याओं का समय पर हल निकालना जरूरी है। बहुत सी छोटी-छोटी उलझन बातें बच्चों को डिप्रेशन का शिकार बना देती है।
अकसर बच्चों में पढ़ाई, सिलेबस, हाई स्टैंडी, प्रतियोगिताओं, खेलकूद क्रीड़ा, डर-भय से सम्बन्धित कई बातों का मलाल हमेशा रहता है। बच्चों की बातें ध्यान से शांत मन एवं प्यार से सुनें। बच्चों को वक्त दें। बच्चों की छोटी-छोटी बातों को नकारे नहीं। क्योंकि बच्चों की हर छोटी-छोटी बातें भी बच्चों के सही कैरियर को आयु बढ़ने के साथ-साथ दिशा देती है। और सही दिशा बच्चों के भविष्य को उज्वल बना सकती है।

बच्चों को समझ नहीं पाना 
बच्चों को समझें। बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह पेश आयें। बच्चों से झूठ नहीं बोलें। और बच्चों से झूठे वादे भी नहीं करें। बच्चों के लिए समय निकालें और उनकी बातें ध्यान से सुन समझकर समस्याओं का समाधान करें। बच्चों को छोटी-छोटी बातों गलतियों पर अनावश्यक डांटे पड़ताड़ित नहीं करें। बच्चों का मन बहुत नाजुक कोमल होता है। बच्चे मासूम होते हैं। घर का माहौल - परवरिश बच्चों के भविष्य को निधारित करता है। जिस तरह की परवरिश होती है। बच्चों का विकास उसी तरह से होता है।

बच्चों में डिप्रेशन हरकत अधिक रहने पर तुरन्त बाल चिकित्सक से सम्पर्क उपचार करवायें। बच्चों को तनाव होने से बचायें। आज का बच्चा कल का भविष्य है। बच्चों के तनाव  पर  समय पर ध्यान और सुझाव उपचार जरूरी है।