ब्लड टेस्ट जांच से कोशिकाओं में मौजूद मुख्य लाल रक्त कणों (RBC), सफेद रक्त कणों (WBC) और प्लेटलेट्स (Platelets) प्लाज्म़ा के द्धारा शरीर में मौजूद रोगों के लक्षणों और समस्याओं का पता सही आंकड़ों के साथ निकाला जा सकता है। मुख्य रूप से शरीर कोशिकाओं में लाल रक्त, सफेद रक्त कण और प्लेटलेट्स से मिलकर ब्लड कोशिकाओं का निर्माण होता है।
ब्लड टेस्ट सम्पूर्ण जानकारी / खून की जांच / खून परीक्षण / खून की जानकारी / Rakt Janch / Khoon ki Janch / Blood Test in Hindi / Rakt Janch Jankari / Bood Test Sampurn Jankari

प्लाज्मा
प्लाज्मा सूक्ष्म थक्के प्रोटीन, ग्लूकोज, हार्मोंस, कार्बनडाईआक्साईड, एमिनो एसिड़, ग्लूकोज, खनिज आयनों, रक्त कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। प्लाज्मा हल्के पीले रंग में द्रव रूप होता है। प्लाज्मा में लगभग 90 प्रतिशत तक पानी द्रव रूप में होता है। और प्लाज्मा में आक्सीजन, काॅबनडाईआक्साइड और नाइट्राॅजन की मात्रा भी मौजूद होती है। जोकि शरीर में संचार करती है।
सफेद रक्त कोशिकाएं (डब्ल्यू.बी.सी.)
WBC count, WBC जिसे सफेद रक्त से जाता जाता है। शरीर को संक्रमण, वायरल, विषाणुओं, चोट, घाव, बीमारियों से बचाने में सफेद रक्तकणों की मुख्य भूमिका होती है। सफेद रक्तकणों की जांच से ही शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता की मात्रा का सही पता लगाया जा सकता है। शरीर में मौजूद सफेद रक्त कण प्रकार न्यूट्रोफिल, मोनोसाइट्स, लिम्फोसाइटो, बेसोफिल, इयोस्नोफिल्स रोगों संक्रमण, एलर्जी, दवाईयों के दुष्प्रभाव, कैंसर, रक्त खराबी, वायरल फ्लू आदि विकारों से लड़ने में सहायक है। न्यूट्रोफिल, मोनोसाइट्स, लिम्फोसाइटो, बेसोफिल और इयोस्नोफिल्स नामक श्वेत रक्त कणों के प्रकार जांच का हिस्सा है। और लेब टेस्ट द्धारा विभिन्न बीमारियों और समस्याओं का पता लगाया जाता है।
एनीमिया, वायरल, संक्रमण, मलेरिया, एड्स, कीमोथैरैपी, दवाईयों के साइड इफेक्टस, लुपस, कुश्गि स्ड्रिोंस, पीलिया और अप्लस्टिक कारणों से सफेद रक्त कणों में कमी आ जाती है।
लाल रक्त कोशिकाएं
सफेद रक्त कणों की तरह लाल रक्त कणों की मुख्य भूमिका है। लाल रक्त कण आक्सीजन को फेफड़ों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में पहुंचाती हैं। और लाल रक्त कणों शरीर में संचार के दौरान काॅबनडाईआक्साईड को वापस फेफड़ों में ले आती है। और फेफड़ें कार्बनडाईआक्साइड को सांस के माध्यम से बाहर निकालती है। शरीर में लाल रक्त कणों की कमी होने पर एनीमिया रोग हो जाता है। जिसे खून की कमी भी कहा जाता है। यदि लाल रक्त कणों की मात्रा शरीर में ज्यादा हो जाये तो उसे पाॅलिसिथिमिया से जाना जाता है। जिसकी वजह से लाल रक्त कण आपस में चिपकने लगते हैं, जिससे शरीर में आॅक्सीजन की कमी होने लगती है। एक तरह से लाल रक्त कणों का शरीर में समान्तर होना जरूरी है।
माहवरी रक्तस्राव, अल्सर, कैंसर, आंतों के रोग, ट्यूमर, थैंलेसीमिया, एनीमिया, फोलिक एसिड की कमी, विटामिन सी विटामिन बी 12 कमी और ब्लड स्मीयर आदि कारणों में लाल रक्त कणों में गड़बडी और कमी आ जाती है। जोकि जांच का हिस्सा है।
लाल रक्त कण हेमाटोक्रिट पैक्ड सेल बाॅल्यूम
HST, PCV Test द्धारा शरीर में एनीमिया और पोलिसिथिमिया होने का पता चलता है। हेमाटोक्रिट और हीमोग्लोबिन रक्त जांच और लाल कोशिकाओं की गणना का मुख्य हिस्सा है।
हीमोग्लोबिन
हीमोग्लोबिन सूक्ष्म अणु कणों के रूप में सम्पूर्ण शरीर में आक्सीजन पहुंचाने से लेकर शरीर से फेफड़ों में कार्बनडाईआक्साईड फिल्टर करने के लिए लाने के साथ-साथ रक्त में लाल रंग का निर्माण करती हैं। शरीर में आक्सीजन की कमी, रक्त की कमी होने पर एच.जी.बी. टेस्ट करना फायदेमंद है। लाल रक्त कण भी तीन तरह के होते हैं। जिनहें एम.सी.वी., एम.सी.एच.सी. और एम.सी.एच. से जाना जाता है। जोकि जांच का अहम हिस्सा है।
प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट)
प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट) सबसे छोटी रक्त कोशिकाएं होती है। शरीर चोट, घाव, रक्त बहने पर प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट) थक्का बनाती है। जिससे चोट घाव रक्त बहने की जगह पर तरल पानी रूप में थक्का जमता है। और अन्दर की अन्य कोशिकाओं को अथेरोस्क्लेसिस प्रक्रिया से सख्त और सुरक्षित बनाती है। गर्भावस्था, आइडियोपैथिक, थ्राॅम्बोसाइटेपेनिक, पीलिया, टाइफाइड, तपैदिक बुखार में भी प्लेटलेट्स की कमी आ जाती है। Platelet Count Range को बढ़ाना जरूरी होता है।
ब्लड टेस्ट निम्न कारणों से किया जाता है
रक्त जांच के बाद सावधानियां
समान्य रूप से सफेद रक्त कण, लाल रक्त कण, प्लेटलेट्स एवं प्लाज्मा की कांउटिंग, कोशिकाओं की आकृति, अंतर और रंग के आधार पर रक्त जांच की जाती है। अलग-अलग लैब की जांच नतीजे 2 से 4 प्रतिशत तक भिन्न हो सकते हैं। रक्त जांच होने पुष्टि होने पर चिकित्सक की सलाह पर तुरन्त रोग का उपचार शुरू करवा देना चाहिए। शरीर में रक्त की कमी जानने के लिए RBC, HCB, HCT रक्त जांच अच्छी होती है।
रक्त कोशिकाओं की जांच के आधार पर टेस्ट सामान्य परिणाम ब्लड काॅम्पोनेंट और स्तर इस तरह से आ सकते हैं।
लाल रक्त कण:
महिलाओं में: 39 - 50 लाख एम.सी.एल.
पुरूषों में: 43 - 57 लाख एम.सी.एल.
हीमोग्लोबिन:
महिलाओं में: 120-155 ग्राम
पुरूषों में: 135 - 175 ग्राम
हीमेटोक्रिटः
महिलाओं में: 34-44 प्रतिशत
पुरूषों में: 38-50 प्रतिशत तक।
सफेद रक्त कण:
3500 - 10,500 एम.सी.एल.
प्लेटलेट्सः
150,000 - 450,000 एम.सी.एल. तक।
CBC Count / WBC Count / Platelets Count गणना आंकड़ें में कम, ज्यादा होना, डिसबैलेंस होने पर रोगों की समीक्षा कर रोगों का पता आसानी से लगाया जाता है। जिससे चिकित्सक को उपचार करने में सहायता मिलती है। जिससे चिकित्सक के लिए समय पर बीमारियों लक्षणों कों समझना और समस्या अनुसार उपचार करना सरल हो जाता है।
सफेद रक्त कणों की तरह लाल रक्त कणों की मुख्य भूमिका है। लाल रक्त कण आक्सीजन को फेफड़ों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में पहुंचाती हैं। और लाल रक्त कणों शरीर में संचार के दौरान काॅबनडाईआक्साईड को वापस फेफड़ों में ले आती है। और फेफड़ें कार्बनडाईआक्साइड को सांस के माध्यम से बाहर निकालती है। शरीर में लाल रक्त कणों की कमी होने पर एनीमिया रोग हो जाता है। जिसे खून की कमी भी कहा जाता है। यदि लाल रक्त कणों की मात्रा शरीर में ज्यादा हो जाये तो उसे पाॅलिसिथिमिया से जाना जाता है। जिसकी वजह से लाल रक्त कण आपस में चिपकने लगते हैं, जिससे शरीर में आॅक्सीजन की कमी होने लगती है। एक तरह से लाल रक्त कणों का शरीर में समान्तर होना जरूरी है।
माहवरी रक्तस्राव, अल्सर, कैंसर, आंतों के रोग, ट्यूमर, थैंलेसीमिया, एनीमिया, फोलिक एसिड की कमी, विटामिन सी विटामिन बी 12 कमी और ब्लड स्मीयर आदि कारणों में लाल रक्त कणों में गड़बडी और कमी आ जाती है। जोकि जांच का हिस्सा है।
लाल रक्त कण हेमाटोक्रिट पैक्ड सेल बाॅल्यूम
HST, PCV Test द्धारा शरीर में एनीमिया और पोलिसिथिमिया होने का पता चलता है। हेमाटोक्रिट और हीमोग्लोबिन रक्त जांच और लाल कोशिकाओं की गणना का मुख्य हिस्सा है।
हीमोग्लोबिन
हीमोग्लोबिन सूक्ष्म अणु कणों के रूप में सम्पूर्ण शरीर में आक्सीजन पहुंचाने से लेकर शरीर से फेफड़ों में कार्बनडाईआक्साईड फिल्टर करने के लिए लाने के साथ-साथ रक्त में लाल रंग का निर्माण करती हैं। शरीर में आक्सीजन की कमी, रक्त की कमी होने पर एच.जी.बी. टेस्ट करना फायदेमंद है। लाल रक्त कण भी तीन तरह के होते हैं। जिनहें एम.सी.वी., एम.सी.एच.सी. और एम.सी.एच. से जाना जाता है। जोकि जांच का अहम हिस्सा है।
प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट)
प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट) सबसे छोटी रक्त कोशिकाएं होती है। शरीर चोट, घाव, रक्त बहने पर प्लेटलेट्स (थ्रोम्बरेारअट) थक्का बनाती है। जिससे चोट घाव रक्त बहने की जगह पर तरल पानी रूप में थक्का जमता है। और अन्दर की अन्य कोशिकाओं को अथेरोस्क्लेसिस प्रक्रिया से सख्त और सुरक्षित बनाती है। गर्भावस्था, आइडियोपैथिक, थ्राॅम्बोसाइटेपेनिक, पीलिया, टाइफाइड, तपैदिक बुखार में भी प्लेटलेट्स की कमी आ जाती है। Platelet Count Range को बढ़ाना जरूरी होता है।
ब्लड टेस्ट निम्न कारणों से किया जाता है
- शरीर में खून की कमी जांच।
- ब्लड गु्रप पता करने के लिए।
- किड़नी, लिवर अन्य अंगों की कार्य दक्षता जांच के लिए।
- रक्तस्व्राव होने पर रक्त हानि पता लगाने के लिए।
- हृदय रोग के स्थिति आकलन के लिए।
- पाॅलिसाइथिमिया जांच के लिए।
- दवाईयों के दुष्प्रभाव जानने के लिए।
- रक्त सम्बन्धित लेकिमिया का पता लगाने के लिए।
- थकान, कमजोरी, चोट, वजन घटने, कमजोरी की वजह और आंकलन के लिए रक्त जांच करना।
- सर्जरी अब्रोशन से पहले रक्त जांच।
- त्वचा, रक्त खराबी में रक्त जांच।
- आनुवंशिक जांच के लिए डी.एन.ए. करना।
- शुगर जांच के लिए।
- अन्य तरह की विभिन्न बीमारियों का पता लगाने के लिए रक्त की जांच की जाती है।
- ब्लड टेस्ट से शरीर में होने वाले बदलाव और स्वास्थ्य की जानकारी आसानी से हासिंल हो जाती है।
- ब्लड जांच से पहले किसी भी तरह की तैयारी नहीं करनी पड़ती है। रक्त जांच किसी भी वक्त व्यक्ति करवा सकता है।
- शरीर स्वस्थ रहने के लिए प्र्याप्त रक्त का होना जरूरी है।
- सफेद रक्त कण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाणी का भाग है।
- प्लेटलेट्स थक्का बनकर रक्त ब्लड बहने से रोकने में सहायक हैं।
- विभिन्न तरह के रोगों के बारे में जानने और शरीर स्वास्थ्य के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है।
- सुरक्षित तरीकों से रक्त जांच करवायें।
- हेल्थ प्रोफेशनल रक्त नमूना लेने से पहले हाथ का ऊपरी भाग में रबर बैंड से कसकर बांध देते हैं। जिससे कि रक्त बहाव रूक जाए, और रक्त सैम्पल लेने में दिक्कत नहीं आये।
- ऐसा करने से हाथ की नसों में रक्त एकत्रित होकर नसें फूल जाती हैं। और रक्त एंजेक्शन में आसानी से बिना रूकावट के निकाल जाता है।
- रक्त नमूना निकालने के लिए नई और साफ सुई इस्तेमाल की जाती है। सुई को इस्तेमाल करने से पहले एंटीसेप्टिक से साफ किया जाता है।
- फिर आराम से सुई को नस में चुभाकर ट्यूब में रक्त भर लिया जाता है।
- रक्त सैम्पल लेने के उपरान्त हाथ से रबड बैंड निकाल कर सुई निशान जगह को रूई से दबा दिया जाता है।
- ब्लड ग्रुप जांच, शुगर जांच के लिए मात्र 1-2 बूंद रक्त लिया जाता है। जिसमें हल्की सी चुभन होती है।
- रक्त सैम्पल देने के बाद एंटीसेप्टिक रूई में लगाकर त्वचा साफ कर दी जाती है।
- लिये गये ब्लड सैम्पल पर व्यक्ति का नाम, पता, संख्या डालकर लैब टैस्ट के लिए भेज दिया जाता है।
रक्त जांच के बाद सावधानियां
- रक्त जांच के लिए देने के बाद सुई लगी नस को रगड़े नहीं चाहिए। और ज्यादा देर तक दबाना भी नहीं चाहिए।
- रक्त सैम्पल लेने के बाद नस में सूजन दर्द होने की समस्या को फ्लेबिटिस से जाना जाता है। सूजन दर्द ग्रसित जगह पर सेंकन, रगड़े नहीं।
- रक्त सैम्पल लेने के बाद रक्तस्राव बन्द नहीं होने की समस्या को ब्लीडिंग डिसआॅर्डर से जाना जाता है।
- रक्त नमूना देते समय शरीर ढीला रखें। शरीर में जकड़न अकड़न नहीं बनाएं। आराम और शान्त मन से रक्त सैम्पल दें।
- एक ही जगह शरीर अंग से बार बार रक्त सैम्पल नहीं करवायें।
समान्य रूप से सफेद रक्त कण, लाल रक्त कण, प्लेटलेट्स एवं प्लाज्मा की कांउटिंग, कोशिकाओं की आकृति, अंतर और रंग के आधार पर रक्त जांच की जाती है। अलग-अलग लैब की जांच नतीजे 2 से 4 प्रतिशत तक भिन्न हो सकते हैं। रक्त जांच होने पुष्टि होने पर चिकित्सक की सलाह पर तुरन्त रोग का उपचार शुरू करवा देना चाहिए। शरीर में रक्त की कमी जानने के लिए RBC, HCB, HCT रक्त जांच अच्छी होती है।
रक्त कोशिकाओं की जांच के आधार पर टेस्ट सामान्य परिणाम ब्लड काॅम्पोनेंट और स्तर इस तरह से आ सकते हैं।
लाल रक्त कण:
महिलाओं में: 39 - 50 लाख एम.सी.एल.
पुरूषों में: 43 - 57 लाख एम.सी.एल.
हीमोग्लोबिन:
महिलाओं में: 120-155 ग्राम
पुरूषों में: 135 - 175 ग्राम
हीमेटोक्रिटः
महिलाओं में: 34-44 प्रतिशत
पुरूषों में: 38-50 प्रतिशत तक।
सफेद रक्त कण:
3500 - 10,500 एम.सी.एल.
प्लेटलेट्सः
150,000 - 450,000 एम.सी.एल. तक।
CBC Count / WBC Count / Platelets Count गणना आंकड़ें में कम, ज्यादा होना, डिसबैलेंस होने पर रोगों की समीक्षा कर रोगों का पता आसानी से लगाया जाता है। जिससे चिकित्सक को उपचार करने में सहायता मिलती है। जिससे चिकित्सक के लिए समय पर बीमारियों लक्षणों कों समझना और समस्या अनुसार उपचार करना सरल हो जाता है।