बायोप्सी टेस्ट में शरीर के रोग ग्रसित अंग का हिस्सा (ऊतक, कोशिका) सैम्पल के तौर पर लेब टेस्ट में जांच के लिए भेजते हैं। जिसे बायोप्सी प्रक्रिया कहा जाता है। बायोप्सी जांच माइक्रोस्कोप के माध्यम से सूक्ष्म जांच होती है। जिसकी रिर्पोट 2-3 दिन के अन्दर आ जाती है। बायोप्सी मुख्य रूप से दो तरह पहली एक्सीजनल और दूसरी इनसीजनल से होती है। एक्सीजनल बायोप्सी में त्वचा पर बनी गांठ, ट्यूमर को जांच के बाद सर्जरी के द्धारा निकाल दिया जाता है। Excisional Biopsy जिसे Core Biopsy से भी जाना जाता है। इस विधि में शरीर अंग कोशिका-ऊतक का नमूना लेकर जांच के लिए भेज दिया जाता है।
बायोप्सी के प्रकार
बायोप्सी जांच सें स्तन गांठ, कैंसर लक्षण, त्वचा संक्रमण, टयूमर, लिवर, फेफड़ों, हड्डियों, किड़नी आदि विभिन्न गम्भीर रोगों के लक्षणों की जांच हो सकती है। बायोप्सी पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक के परामर्श अनुसार करवाया जाता है। Biopsy Results आने पर चिकित्सक रोग की समीक्षा, सर्जरी और उपचार करते हैं।
नीड्ल बायोप्सी
इस विधि सुई के द्धारा ग्रसित अंग से तरल रूप में सैम्पल लिया जाता है। नीड्ल बायोप्सी में दो तरह की सुईयां इस्तेमाल की जाती हैं। पहली पतली फाइन नीड्ल एस्पिरेशन और दूसरी चैडी वाइड नीड्ल बायोप्सी (एफ.एन.ए.बी.) है। नीड्ल बायोप्सी स्तन कांठ, थायराइड, सड़न संक्रमण के लिए किया जा सकता है। इस विधि में नींड्ल टिस्सू तक पहुंचाने की प्रक्रिया होती है।
स्टीरियोटेस्क्टक बायोप्सी
इस विधि में ब्रेन की समस्याओं जैसे कि ट्यूमर, साइनस कफ संक्रमण आदि की जाती है। स्टीरियोटेस्क्टक ब्रेन जांच के लिए जटिल बायोप्सी होती है।
अल्ट्राॅसाउड बायोप्सी
इस विधि सुई के द्धारा ग्रसित अंग से तरल रूप में सैम्पल लिया जाता है। नीड्ल बायोप्सी में दो तरह की सुईयां इस्तेमाल की जाती हैं। पहली पतली फाइन नीड्ल एस्पिरेशन और दूसरी चैडी वाइड नीड्ल बायोप्सी (एफ.एन.ए.बी.) है। नीड्ल बायोप्सी स्तन कांठ, थायराइड, सड़न संक्रमण के लिए किया जा सकता है। इस विधि में नींड्ल टिस्सू तक पहुंचाने की प्रक्रिया होती है।
स्टीरियोटेस्क्टक बायोप्सी
इस विधि में ब्रेन की समस्याओं जैसे कि ट्यूमर, साइनस कफ संक्रमण आदि की जाती है। स्टीरियोटेस्क्टक ब्रेन जांच के लिए जटिल बायोप्सी होती है।
अल्ट्राॅसाउड बायोप्सी
पैथोलाॅजिस्ट अल्ट्राॅसाउड की मद्दद्द से बीमारी के लक्षणों जानने में सहायता करती है। जिससे स्कैन गाईड बायोप्सी करने में आसानी रहती है। पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक को बायोप्सी से पहले लिवर, किड़नी, आन्तरिक समस्याओं को जानने में आसानी रहती है। उसके बाद ग्रसित अंग अंशा जांच के लिए लिया जाता है।
खुरद
स्क्रेप विधि में पैथोलाॅजिस्ट मुंह के अन्दर से या गर्भाश्य के अन्दर से या गुप्तांग अन्दरूनी कोशिका-ऊतक सूक्ष्म हिस्सा सावधानीपूर्वक निकाल कर लैब जांच के लिए भेज दिया जाता है।
एंडोस्कोपी बायोप्सी
इस विधि स्कोप शरीर के अन्दर डालकर आॅप्टिकल उपकरण की सहायता से जांच और सैम्पल लिया जाता है।
पंच बायोप्सी
पंच बायोप्सी की जरूरत त्वचा संक्रमण-चर्म, त्वचा संड़न जैसी स्थिति में किया जाता है। इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट कोशिका /ऊतक को गोलाकर उपकरण से काट कर लैब टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है।
सी.टी. बायोप्सी
इस विधि में ग्रसित जगह का सी.टी. स्कैन होता है। ग्रसित टिस्सू को पहचानने में मद्द मिलती है। जिससे पैथोलाॅजिस्ट ग्रसित अंग का हिस्सा लेकर लेब टेस्ट के लिए भेजते हैं। सी.टी. बायोप्सी से रोग के लक्षण की समीक्षा करने में आसानी रहती है।
हड्डियों की बायोप्सी
इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक हड्डियों में कैंसर, आॅस्टियोपोरोसिस (हड्डियां कमजोर होना), ल्यूकोरिया और हड्डियों से सम्बन्धित बीमारियों के लिए करते हैं। यह काफी जटिल बायोप्सी हो सकती है।
लिवर बायोप्सी
इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक लिवर टिस्सू की जांच करते हैं। लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर, फैटी लिवर ग्रेड 1/2, लिबर संकुचलन आदि लिवर सम्बन्धित समस्याओं में लिवर बायोप्सी की जाती है। यह एक तरह से जटिल प्रक्रिया है। जिसे बडे ही सावधानिपूर्वक किया जाता है।
किड़नी बायोप्सी
इस विधि किड़नी कैंसर, किड़नी खराब होने पर, किड़नी पस, किड़नी फेल जैसी गम्भीर समस्याओं की जाती है। किड़नी बायोप्सी में 4 से 6 घण्टे तक लग सकते हैं। किड़नी बायोप्सी पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक के लिए किसी चुनौती से कम नही होती है।
हार्ट बायोप्सी
हृदय वहिकाओं में रूकावट, रक्त संचार अवरूध, वसा जमना, सूजन दर्द आदि हृदय से समस्याओं में हार्ट बायोप्सी की जाती है। पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक के लिए हार्ट बायोप्सी जटिल प्रक्रिया है।
लंग्स बायोप्सी
फेफड़ों में संक्रमण, फेफड़े खराबी, फेफड़ों में पानी भरना, फेफड़े सिकुड़ने, फेफड़े क्षतिग्रस्त होने जैसी गम्भीर समस्याओं में लंग्स बायोप्सी की जाती है। किस भाग की बायोप्सी करनी है, यह चिकित्सक / सर्जन की जांच और राय पर निर्भर करता है।
त्वचा बायोप्सी
स्किन बायोप्सी - त्वचा सड़न, त्वचा संक्रमण, त्वचा एलर्जी, दाद जैसे त्वचा सम्बन्धित गम्भीर लक्षणों में की जाती है।
बायोप्सी की जरूरत कब होती है
खुरद
स्क्रेप विधि में पैथोलाॅजिस्ट मुंह के अन्दर से या गर्भाश्य के अन्दर से या गुप्तांग अन्दरूनी कोशिका-ऊतक सूक्ष्म हिस्सा सावधानीपूर्वक निकाल कर लैब जांच के लिए भेज दिया जाता है।
एंडोस्कोपी बायोप्सी
इस विधि स्कोप शरीर के अन्दर डालकर आॅप्टिकल उपकरण की सहायता से जांच और सैम्पल लिया जाता है।
पंच बायोप्सी
पंच बायोप्सी की जरूरत त्वचा संक्रमण-चर्म, त्वचा संड़न जैसी स्थिति में किया जाता है। इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट कोशिका /ऊतक को गोलाकर उपकरण से काट कर लैब टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है।
सी.टी. बायोप्सी
इस विधि में ग्रसित जगह का सी.टी. स्कैन होता है। ग्रसित टिस्सू को पहचानने में मद्द मिलती है। जिससे पैथोलाॅजिस्ट ग्रसित अंग का हिस्सा लेकर लेब टेस्ट के लिए भेजते हैं। सी.टी. बायोप्सी से रोग के लक्षण की समीक्षा करने में आसानी रहती है।
हड्डियों की बायोप्सी
इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक हड्डियों में कैंसर, आॅस्टियोपोरोसिस (हड्डियां कमजोर होना), ल्यूकोरिया और हड्डियों से सम्बन्धित बीमारियों के लिए करते हैं। यह काफी जटिल बायोप्सी हो सकती है।
लिवर बायोप्सी
इस विधि में पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक लिवर टिस्सू की जांच करते हैं। लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर, फैटी लिवर ग्रेड 1/2, लिबर संकुचलन आदि लिवर सम्बन्धित समस्याओं में लिवर बायोप्सी की जाती है। यह एक तरह से जटिल प्रक्रिया है। जिसे बडे ही सावधानिपूर्वक किया जाता है।
किड़नी बायोप्सी
इस विधि किड़नी कैंसर, किड़नी खराब होने पर, किड़नी पस, किड़नी फेल जैसी गम्भीर समस्याओं की जाती है। किड़नी बायोप्सी में 4 से 6 घण्टे तक लग सकते हैं। किड़नी बायोप्सी पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक के लिए किसी चुनौती से कम नही होती है।
हार्ट बायोप्सी
हृदय वहिकाओं में रूकावट, रक्त संचार अवरूध, वसा जमना, सूजन दर्द आदि हृदय से समस्याओं में हार्ट बायोप्सी की जाती है। पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक के लिए हार्ट बायोप्सी जटिल प्रक्रिया है।
लंग्स बायोप्सी
फेफड़ों में संक्रमण, फेफड़े खराबी, फेफड़ों में पानी भरना, फेफड़े सिकुड़ने, फेफड़े क्षतिग्रस्त होने जैसी गम्भीर समस्याओं में लंग्स बायोप्सी की जाती है। किस भाग की बायोप्सी करनी है, यह चिकित्सक / सर्जन की जांच और राय पर निर्भर करता है।
त्वचा बायोप्सी
स्किन बायोप्सी - त्वचा सड़न, त्वचा संक्रमण, त्वचा एलर्जी, दाद जैसे त्वचा सम्बन्धित गम्भीर लक्षणों में की जाती है।
बायोप्सी की जरूरत कब होती है
- बायोप्सी चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट के परामर्श के आधार पर रोगों के लक्षणों के पहचान के लिए की जाती है। बायोप्सी एक सावधानिपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया है।
- शरीर में गांठ, टयूमर, फोड़ा- बाल तोड़, संक्रमण, वायरल, सड़न, कैंसर होने पर बायोप्सी की जाती है।
- आंतों में सड़न, दवाईयों के साईट इफेक्टस और अन्य कारणों से पेट में अल्सर होने पर आंतों की बायोप्सी की जाती है। कई बार एनीमिया, सीलिएक, स्टेराॅयड एंटी इंफ्लेमेन्टरी मेडिसन के साईफेक्टस स्थिति में बायोप्सी करवानी पड़ सकती है।
- लिवर ट्यूमर, लिवर सिरोसिस-फैटी लिवर, लिवर कैंसर, लिवर फाइब्रोसिस, हैपेटाइटिस-संक्रमण, नशे से लिवर क्षति में बायोप्सी की जाती है।
- वायरल, संक्रमण ठीक नहीं होने पर भी रोगों के कारणों का सुई के माध्यम से बायोप्सी की जाती है।
- शरीर में सूजन, जलन, रक्त खराबी संक्रमण और साथ में बुखार से ग्रसित रहने पर भी चिकित्सक रोग की सूक्ष्म तरीके से जांच करने के लिए बायोप्सी की सलाह देते हैं। इससे इन्फ्लमेशन स्थिति का पता आसानी से चल जाता है।
- बायोप्सी एक जटिल प्रक्रिया है। चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट के सुझाव पर बायोप्सी होती है।
- बायोप्सी से पहले नर्स / पैथोलाॅजिस्ट मरीज को खास निर्देश देते हैं, जिनका पालन करना होता है।
- खाने-पीने की सलाह बायोप्सी प्रकार पर निर्भर करती है। कई तरह की बायोप्सी में खाने पीने से परहेज होता है।
- दवाईयां सेवन करने वाले व्यक्ति को बायोप्सी से पहले चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट को बताना होता है। जिससे बायोप्सी में होने वाली जांच जटिलताओं को सही तरीके से परखकर किया जा सके।
- यदि व्यक्ति एलर्जी, ब्लड प्यूरिफाई मेडिसिन लेता हो तो, चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट को पहले अवश्य बतलाएं।
- हर तरह की बीमारियों जिनकी आप दवाईयां ले रहें या फिर गम्भीर हैं, चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट को अवश्य बतलाएं।
- बायोप्सी पहली स्थिति में व्यक्ति को आरामदायक, अस्पताल द्धारा जारी किये कपड़े पहनाये जाते हैं।
- बायोप्सी के दौरान व्यक्ति को पीठ / पेट के बल लिटाया जा सकता है। यह बायोप्सी की तरह की है, उस पर निर्भर करता है।
- बायोप्सी शुरू होने से 4-5 मिनट पहले बेहोशी की दवाई अनेस्थिसिया (Anesthesia) दी जाती है।
- अनेस्थिसिया दवा की मात्रा सीमित और बायोप्सी समय के आधार पर दी जाती है।
- अनेस्थिसिया तीन तरह से दी जाती है। सुन्न करने के लिए नाॅमल अनेस्थिसिया और रिलेक्स होने के लिए काॅन्शियस सेंडेशन दी जा सकती है। बायोप्सी सर्जरी के लिए जेनरल अनेस्थिसिया दी जा सकती है।
- अनेस्थिसिया दवा लेने के बाद मरीज को कुछ भी पता नही चलता है।
- बायोप्सी में लगभग 20 मिनट से 60 मिनट तक लग सकते हैं। यह बायोप्सी किस अंग की होने पर उस निर्भर करता है।
- बायोप्सी होने के बाद लिये गये सैम्पल को लैब टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है। 2-3 दिन के अन्दर रिर्पोट आ जाती है।
- बायोप्सी जांच रिर्पोट के अनुसार चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट रोग की समीक्षा और उपचार करते हैं।
- बायोप्सी के बाद मरीज को 24 से 48 घण्टे तक अस्पताल में आराम करने की सलाह दी जाती है।
- बायोप्सी के दौरान दी गई अनेस्थिसिया दवा का असर कई बार देर तक रह सकता है।
- कई बार बायोप्सी से होने वाले जोखिमों को जानने के लिए भी मरीज को अस्पताल में 2-3 दिन आराम की सलाह दी जाती है।
- बायोप्सी वाले अंग में सूजन, दर्द, संक्रमण से बचने के लिए चिकित्सक एन्टीबायोटिक और दर्दनिवारण मेडिसिन देते हैं।
- बायोप्सी की गई जगह की जांच के बाद ही चिकित्सक मरीज को अस्पताल से छुट्टी देते हैं।
- कई गम्भीर बीमारियों की बायोप्सी के बाद भी मरीज को अस्पताल में ठहराया जाता है।
- बायोप्सी टेस्ट के बाद पैथोलाॅजिस्ट / चिकित्सक जांच के उपरान्त मरीज को अस्पताल से छुट्टी का निर्णय करते हैं। यह मरीज के स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है।
- बायोप्सी के बाद शरीर अंग में रक्तस्राव हो सकता है।
- बायोप्सी चीर फाड़ (सर्जरी) से त्वचा संक्रमण, पस बनने, दर्द, सूजन की समस्या हो सकती है।
- नाजुक अंगों की बायोप्सी से व्यक्ति को तेज बुखार, चक्कर, घबराहट हो सकती है।
- बायोप्सी से आंत, ऊतक, कोशिका क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
- नाजुक कोमल अंगों की बायोप्सी में रक्तस्राव संदिग्ध हो सकता है।
- सही तरह से बायोप्सी नहीं होने पर, दोबारा सैम्पल लिया जा सकता है।
- बायोप्सी एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें चिकित्सक / पैथोलाॅजिस्ट को बड़ी ही सावधानिपूर्वक बायोप्सी करनी होती है। थोड़ी सी गलती / चूक मरीज को जोखिम में डाल सकती है।