मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग MALLIKARJUNA JYOTIRLINGA IN HINDI Health Tips in Hindi, Protected Health Information, Ayurveda Health Articles, Health News in Hindi मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग MALLIKARJUNA JYOTIRLINGA IN HINDI - Health Tips in Hindi, Protected Health Information, Ayurveda Health Articles, Health News in Hindi

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग MALLIKARJUNA JYOTIRLINGA IN HINDI

आंध्र प्रदेश में शैल पर्वत से निकलने वाली कृष्णा नदी के तट श्रीसैलम पर पवित्र आलौकिक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को द्धितीय ज्योतिर्लिंग से माना गया है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन स्कंदपुराण, महाभारत, शिव पुराण तथा पद्मपुराण में विस्तार पूर्वक है। शास्त्रों अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा अराधना तक तप एक अश्वमेध यज्ञ के बाराबर होता है। 

51 शक्तिपीठो में से यह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग एक खास शक्ति पीठ माना जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शनए पूजा और अराधना भक्तों को समस्त कष्ठों से मुक्ति देती है। और अनन्त सुख की प्राप्ति भी होती है। विवाह उपरान्त मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन दम्पत्ति जीवन के लिए खास समृद्धि बरदान दायक माना जाता है।

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर इतिहास
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास गणेश जी के विवाह की रोचक कथा से जुडा हुआ है। पुराण ग्रन्थों अनुसार एक बार श्री गणेश जी और स्वामी कार्तिकेय जी में विवाह को लेकर आपस मे लडने लगे। दोनों अपना . अपना विवाह पहले करवाने की जिद में अड़े थे। दोनों को झगड़े को सुलझाने के लिए भगवान शंकर ने कूटनीतिज्ञ चाल चली। महादेव जी ने शर्त रखी कि दोनों में से जो पृथवी की परिक्रमा पहले करेगाए उसका विवाह पहले किया जायेगा।

स्वामी कार्तिकेय जी ने अपना वाहन मयूर चुना। और श्री गणेश जी ने मूसक राज। स्वामी कार्तिकेय जी मयूर पर सवार होकर पृथवी के चक्कर लगाने के लिए उड़े। परन्तु चतुर गणेश जी ने मां पार्वती और महादेव के आसन की 7 बार परिक्रमा की। इस चतुराई से महादेव जी और मां पार्वती अति प्रसन्न हुए। श्री गणेश जी ने आसानी से साक्षत पृथवीए ब्रह्मण्ड त्रीदेव और आदि शक्ति मां की परिक्रमा कर ली थी। और विजेता हुए। और गणेश जी का विवाह सिद्धि और बुद्धि नाम की कन्याओं से हुआ। समय अनुसार श्री गणेश जी के दो पुत्र क्षेम एवं लाभ उत्पन्न हो चुके थे। स्वामी कार्तिकेय जी को पृथवी के चक्कर लगाने में देर हो चुकी थी। पृथवी के चक्कर लगा कर आने पर यह कुछ देख कर नाराज हो गये। मां पार्वती और महादेव जी ने कार्तिकेय जी को बहुत समझाया और मनाया। परन्तु स्वामी कार्तिकेय जी रूठ कर कौंच पर्वत पर चले गये।

भगवान शिव और माता पार्वती श्री स्वामी कार्तिकेय जी को माने कौंच पर्वत के तट पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। परन्तु कार्तिकेय जी वहां से भी चले गये। तब से इस पवित्र स्थान पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है। शिवपुराण अुनसार अमावस्या रात्रि को भगवान शिव प्रकट होते हैं। और पूर्णिमा रात्रि मां पार्वती ;उमादेवीद्ध प्रकट होती हैं। अमावस्या और पूर्णिमा को यहां भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है।

मल्लिकार्जुन नाम क्यों पड़ा ?
माता पर्वती का उपनाम मल्लिका और भगवान महादेव जी का उपनाम अर्जुन है। इस प्रकार माता पर्वती और भगवान महादेव जी का एक साथ ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुऐ थे। तब से ही इस पवित्र स्थान का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा है।

मल्लिकार्जुन मंदिर निर्माण शैली
मल्लिकार्जुन मंदिर बहुत पुराना मंदिर है। इसका कई बार मरम्त की गई है। यह मन्दिर विशाल ऊंची पत्थर से निर्मित चारदीवारी के बीच बनी है। दीवारों स्तम्बों पर हाथी घोडों की कलाकृति दर्शायी गई है। मन्दिर के परकोटे मे चारों ओर द्धार बने हैं। द्धारों पर गोपुर बने है। साथ ही विभिन्न कलाकृतियों से सुसज्जित है। दूसरे प्रकार के भीतर मल्लिकार्जुन मंदिर बना है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के पूर्विद्धार के सामने सभा मंडप बना है। जहा शिवरात्रि पर शिव पार्वती विवाह उत्सव मनाया जाता है। मंदिर के पीछे कि ओर पार्वती देवी का मंदिर बना है।

मंदिर की दीवारों पर कई मूर्तियां बनी हुई है। इस मंदिर अधिकांश बदलाव और मर्रमत विजयनगर साम्राट के राजा हरिहर के समय में किए गए थे। मंदिर के पूर्वी द्धार से कृष्णा नदी तक एक मार्ग गया है जिसे पाताल गंगा से भी पुकारा जाता है। पाताल गंगा की मंदिर से दूरी लगभग 3 किमीण् है। जो कि आधा मार्ग समान्य है और आधा मार्ग थोड़ा कठिन माना जाता है। आधे मार्ग मे नीचे उतने क़े लिए लगभग 842 सीढीयां बनी है। जो इस मार्ग को कठिन बनाती है। इसके अलावा यहा पास ही में त्रिवेणी घाट भी है। यहां दो छोटी नदी कृष्णा नदी मे आकर मिलते है। इस स्थल को त्रिवेणी घाट कहते हैं।